मोरोक्को के शाह, मुलाइ ईस्माइल (1646-1727) के 888 बच्चे थे। उसकी सेना की एक रेजिमेंट थी जिसमें 540 सैनिक थे और वे सारे के सारे उसके बेटे थे।
टर्की के सुल्तान, मुस्तफा IV (1717-1774) के 582 बच्चे थे। सारे के सारे लड़के। सत्रह सालों तक कन्या पाने की उसकी सारी कोशिशें बेकार साबित हुईं।
सुल्तान अब्दुल हमीद II, (1876-1909) के सिर्फ 500 के करीब बच्चे थे। आश्चर्य इस बात का नहीं है, आश्चर्य इस बात का है कि उसकी 30,000 पत्नियां थीं।
पोलैंड के अगस्ट II और सैक्सोनी (1670-1733) के 355 बच्चे थे, जिनमें 354 नाजायज औलादें थीं। एकमात्र जायज बेटा अगस्ट III था, जो बाद में राजा बना।
फ्रांस में बोरडिक्स के जीन गाई साहब की किस्मत देखिए। उन्होंने 16 बार शादी की। हर बार वधू अपने साथ अपने बच्चों को लाई। अंत में इन्होंने जब सारे बच्चों का हिसाब लगाया तो पाया कि वे 121 बच्चों के सौतेले पिता हैं।
अंत में फ्रांस के ही पुयी-दि-डोम के जैक्स दि थियर्स (1630-1747) की खुशकिस्मति देखिए। इनके 25 लड़के और एक लड़की थी। इनका प्रत्येक बेटा फ्रांस की सेना में कर्नल बना। हरेक ने युद्ध में अपनी-अपनी रेजिमेंट के साथ लड़ते हुए नाम कमाया। युद्ध के बाद लुइस XIV ने उन्हें प्रशस्ति पत्र दिया जिसमें उल्लेख था कि इन 25 थियर्स भाईयों, जो कि श्रीमान जैक्स थियर्स के बेटे हैं के कारण ही युद्ध जीता जा सका। गर्वोनत जैक्स थियर्स ने 117 साल की उम्र प्राप्त की। KHABRYE
टोक्यो। जापनी शोधकर्ताओं के एक दल को पारदर्शी गोल्डफिश बनाने में सफलता मिल गई है। इस मछली की शल्कें और त्वचा पारदर्शी हैं जहां से उसके अंगों और मांसपेशियों को देखा जा सकता है।
मी विश्वविद्यालय और नागोया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के एक संयुक्त दल ने दो वर्ष के शोध के बाद पारदर्शी मछलियां विकसित की हैं। इन मछलियों के अंगों और रक्त को चीड़-फाड़ किए बिना देखा जा सकता है। कुछ गोल्डफिश का वजन दो किलोग्राम तक हो सकता है और वे प्रयोगों में इस्तेमाल की जाने वाले जेब्राफिश जैसी मछलियों की अपेक्षा बहुत बड़ी होती हैं।
मी विश्वविद्यालय की प्रोफेसर युटाका तामारू के मुताबिक गोल्डफिश बड़ी होती है इसलिए उसमें पारदर्शिता विकसित होने पर यह देखा जा सकता है कि किस तरह से बीमारी उनके अंगों को प्रभावित करती है।
उन्होंने कहा कि इससे इन मछलियों में प्रोटीन के निर्माण पर नजर रखी जा सकती है और दवाओं की खोज के अनुसंधान में इसका उपयोग किया जा सकता है। अनुसंधान के लिए जेब्राफिश की अपेक्षा गोल्डफिश का उपयोग करना कम खर्चीला होता है।
भोपाल। कहा जाता है कि सीखने और पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती। इस कहावत को मध्य प्रदेश के पंधाना विधानसभा क्षेत्र से विधायक अतर भाई बास्कले बखूबी चरित्रार्थ कर रहे हैं। वह 35 वर्ष की उम्र में 10 वीं कक्षा की परीक्षा देने की तैयारी में हैं।
अनुसूचित जनजाति से ताल्लुक रखने वाले बास्कले को हालातों ने आगे की पढ़ाई जारी रखने से रोक दिया था। हालात बदले, वे निर्वाचित होकर विधानसभा में पहुंचे और उन्हें लगा कि पढ़ाई जारी रखना चाहिए। उनका मानना है कि समाज की प्रगति के लिए शिक्षा जरूरी है।
बास्कले ने पत्रकारों को बताया कि उन्होंने उम्र की झिझक को किनारे कर पढ़ाई जारी रखने का फैसला किया और मुक्त विद्यालयी शिक्षा के तहत 10वीं परीक्षा का फार्म भर दिया। उन्होंने लोगों का आह्वान करते हुए कहा कि पढ़ाई में उम्र बाधक नहीं होती और न ही पढ़ाई पर उसका असर पड़ता है। पढ़ाई विकास एवं तरक्की के लिए आवश्यक है।
मुक्त विद्यालयी परीक्षा की खूबियां बताते हुए बास्कले कहते हैं कि यह ऐसी परीक्षा है जिसके लिए न तो कोई उम्र का बंधन है और न ही कोई अन्य बाधा है इसलिए सभी को इस सुविधा का लाभ उठाना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि प्रदेश के विकास के लिए शिक्षा जरूरी है। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राज्य को स्वर्णिम प्रदेश बनाना चाहते हैं, इसके लिए शिक्षा जरूरी है, इसलिए सभी लोग पढ़ाई करें।